हजारों किस्से, प्रीतम को छोड़ कर साहिर के इश्क में डूब जाना, इसके बाद इमरोज का अमृता को चाहना और अमृता का साहिर को। इन्हीं किस्सागोई के बीच कुछ शेष था तो वह प्रेम ही था।
कभी अमृता और साहिर का प्रेम अहम की टकसाल से नहीं गुजरा, न ही अमृता ने थोपना अपनी आदत बनाया। इसीलिए वह प्रेम अमर हुआ।
चाय का एक झूठा कप, जली हुई सिगरेट के टुकड़े, कुछ किस्से, कुछ यादें और ढेर सारे खुतूत। साहिर और अमृता की मोहब्बत की ये कुल जमा-पूंजी थी।
अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम ने साहिर के साथ हुई मुलाकातों का जिक्र किया है। वो लिखती हैं कि, 'जब हम मिलते थे, तो जुबां खामोश रहती थी। नैन बोलते थे। दोनों बस एक टक एक दूसरे को देखा किए और इस दौरान साहिर लगातार सिगरेट पीते रहते थे। मुलाकात के बाद जब साहिर वहां से चले जाते, तो अमृता अपने दीवाने की सिगरेट के टुकड़ों को लबों से लगाकर अपने होठों पर उनके होठों की छुअन महसूस करने की कोशिश करती थीं।
अमृता प्रीतम और साहिर की मोहब्बत की राह में कई रोड़े थे। एक वक्त था जब अमृता और साहिर दोनों लाहौर में रहा करते थे। फिर मुल्क तकसीम हो गया। अमृता अपने पति के साथ दिल्ली आ गईं। साहिर मुंबई में रहने लगे। अमृता अपने प्यार के लिए शादी तोड़ने को तैयार थीं। बाद में वो अपने पति से अलग भी हो गईं। दिल्ली में एक लेखिका के तौर पर वो अपने स्थान और शोहरत को भी साहिर पर कुर्बान करने को तैयार थीं।
साहिर ने अमृता को जहन में रखकर न जाने कितनी नज्में, कितने गीत, कितने शेर और कितनी गजलें लिखीं। वहीं अमृता प्रीतम ने भी अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में खुलकर साहिर से इश्क का इजहार किया है।
कोई कल्पित कहानी नहीं थी अमृता और साहिर के बीच, इश्क अल्लाह हक अल्लाह की तरह अमृता और साहिर केवल प्रेम करते थे, और प्रेम को अमर कर गए।
इंटरनेट की टकसाल से पैदा हुए कुछ तथाकथित साहित्यकार इमरोज को अमृता का पति मानते है, जबकि अमृता और इमरोज एक छत के नीचे रहने वाले साथी रहें, कभी समाज के लिए उन्होंने शादी नहीं की। इमरोज अमृता से प्रेम जरूर करते थे पर अमृता में कभी भी इमरोज से प्यार नहीं किया। अमृता ने अपने पति प्रीतम सिंह को तलाक दे दिया था। हजारों किस्से है इस प्रेम कहानी के, उसके बाद भी अमृता का प्रेम के प्रति पूर्ण समर्पण इस बात का प्रमाण था कि अमृता ने किसी वजह के बिना प्रेम किया था, प्रेम को जीया था, कभी आवेग या अहम की भेंट नहीं चढ़ने दिया अपने प्रेम को, इसीलिए साहिर कभी छोड़ कर गए भी नहीं।
इसीलिए आसाँ नहीं है अमृता हो जाना....
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'