सिंधिया ने पहनाया शिवराज को सरकार का ताज...

मध्यप्रदेश। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने से संघ परिवार का कैडर खुश है। पिछले सवा वर्ष के दौरान अनेक मौकों पर कांग्रेस भाजपा पर भारी दिखी,इससे मैदानी भाजपा कार्यकर्ता  का मनोबल प्रभावित हो रहा था। पिछले साल हुए झाबुआ विधानसभा के उपचुनाव से साफ जाहिर हुआ था कि पार्टी को मालवा-निमाड का अपना परंपरागत गढ़ बचा कर रखना है,तो किसी करिश्माई नेता की आवश्यकता पड़ेगी। राजसी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ज्योतिरादित्य सिंधिया यह कमी पूरी करने में सक्षम हैं। वैसे भी इंदौर-उज्जैन संभाग की तमाम छोटी रियासतें ग्वालियर की सिंधिया रियासत की हमकदम रहीं हैं। यही वजह  है कि देवास और धार की पवार स्टेट के संबंध सिंधियाओं से बेहतर रहे हैं,जबकि इंदौर की होलकर स्टेट के वारिस चूंकि कभी राजनीति में नहीं रहे,इसलिए वे भी पूर्व ग्वालियर रियासत के वंशजों के मित्र रहे हैं। मल्हारराव होलकर,देवी अहिल्याबाई होल्कर के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय होलकर वंशज यशवंत राव होलकर की पुत्री उषाराजे होलकर मल्होत्रा और उनके पति सतीश मल्होत्रा तो स्व.माधवराव सिंधिया के निकटतम मित्रों में से थे। यही वजह है कि एमपीसीए और बीसीसीआई का अध्यक्ष रहते हुए स्व.माधवराव सिंधिया ने उन्हीं के कहने पर एमपीसीए के स्टेडियम का नाम होलकरों के नाम पर करना तय किया था। स्व.माधवराव की इच्छा उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एमपीसीए का अध्यक्ष रहते हुए पूरी की थी। भाजपा के ताई खेमे ने सदैव क्रिकेट की राजनीति में सिंधिया वंशजों का साथ दिया है। भाजपा के सूत्रों का इसिलिए कहना है कि सिंधिया खेमें के चारों विधायकों यथा तुलसी सिलावट,हरदीप डंग,मनोज चौधरी और राजवर्धनसिंह दत्तीगांव के आने से भाजपा में टकराहट नहीं,बल्कि खुशी का वातावरण है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मालव प्रांत के थिंक टैंक भी मानते हैं कि इन चारों पूर्व विधायकों के भाजपा में आने से सोशल इंजीनियरिंग के संदर्भ में पार्टी को लाभ मिलेगा। धार,इंदौर और देवास जिले में लाभ राजवर्धनसिंह दत्तीगांव आईएएस की परीक्षा पास आउट हैं। वे तीन बार जबकि उनके स्व.पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव एक बार बदनावर से विधायक रहे हैं। बदनावर से 1985 के बाद से कांग्रेस का टिकट इसी परिवार को मिला है। भाजपा ने यहां जातीय समीकरण साधते हुए कभी खेमराज पाटीदार तो कभी रमेशचंद्र राठौर गट्टू बना को टिकट दिया। 2013 में यहां से इंदौर के नेता भंवरसिंह शेखावत लडें और जीते थे। जबकि 2018 के चुनाव में भंवर सिंह शेखावत यहां से तीसरे नंबर पर रहे हैं और बड़ी मुश्किल से अपनी जमानत बचा पाए। राजवर्धनसिंह दत्तीगांव के भाजपा में शामिल होने का लाभ भाजपा को ना केवल बदनावर, बल्कि सरदारपुर विधानसभा सीट पर मिलेगा। सरदारपुर विधानसभा आदिवासी सुरक्षित सीट हमेशा से भाजपा के लिए सरदर्द रही है। इसी तरह जीतू जिराती के कमजोर होने के बाद देवास,शाजापुर और इंदौर जिले के चंद्रवंशी खाती समाज में भाजपा के पास तेज तरार्र और साधन संपन्न खाती नेता का अभाव था। इंदौर जिला पंचायत का अध्यक्ष बनवाकर कैलाश विजयवर्गीय ने ओम परसावदिया को खाती समाज में प्रमोट करने की कोशिशें की थी,लेकिन ये कोशिशें कामयाब नहीं हुई। ऐसे में हाटपिपल्या के विधायक मनोज चौधरी के कारण भाजपा को एक बड़ा और युवा खाती नेता मिलेगा। इधर,इंदौर जिले में तुलसी सिलावट के टक्कर का दलित नेता भाजपा के पास नही है।,स्व.फूलचंद वर्मा,नारायण केसरी को भाजपा ने अनेक बार सांसदी और सरकारी पद दिए लेकिन ये नेता इंदौर जिले में सर्वमान्य और जुझारू दलित नेता की तरह स्थापित नहीं हो सके। इस संदर्भ में स्वर्गीय प्रकाश सोनकर दबंग और धाकड़ नेता थे लेकिन उनके असामयिक निधन से प्रखर दलित नेता का स्थान रिक्त हो गया। ऐसे में तुलसी सिलावट स्व.प्रकाश सोनकर के आकस्मिक निधन से रिक्त हुए जगह को भर सकेंगे। सांवेर जनसंघ के समय से  संघ परिवार का गढ़ रहा है। 1967 में भी भारतीय जनसंघ ने सांवेर सीट जीती थी। 77 में यहां से जनता पार्टी के स्व.अर्जुनसिंह घारू जीते थे। जबकि 80,90,93 और 2003 में संावेर से स्व.प्रकाश सोनकर जीते थे। तुलसी पेहलवान के नाम से लोकप्रिय श्री सिलावट इंदौर के बड़े छात्र नेता रहे हैं। उनके आने से इंदौर जिले को बड़ा दलित नेता भाजपा को मिला है। सिख समाज से मिला सक्षम नेतृत्व मालवा-निमाड में भाजपा के पास कद्दावर सिख समाज के नेता का आभाव था। इस कमी को सुवासरा से दूसरी बार जीते हरदीपसिंह डंग पूरा कर सकेंगे। भाजपा ने कांग्रेस से ही सीहोर के दबंग नेता और तीन बार विधायक रहे जसपालसिंह अरोरा को कांग्रेस से इन सोर्स किया था,लेकिन वे विवादास्पद हो गए। ऐसे में इस पूरे अंचल में हरदीपसिंह डंग के रूप में भाजपा को सिख नेता मिल गया है।